Thursday, April 15, 2010

ख्वाब

कल रात एक ख्वाब देखा,
अपने हाथों में एक हाथ देखा,
और देखा की ये दुनिया , कितनी हसीं होती है,
और किसी के साये में धूप भी रंगीन लगती है,
इस कदर गुम थे हम ख्वाब में ,
की बहार में सिर्फ फूल ही दीखते थे,
एक फूल को छूने से कांटा चुभ गया,
कांटा चुभा तो खून बहा, दर्द हुआ और ख्वाब टूट गया,
.......
अब न वो ख्वाब है, न हाथ, न साया और न फूल,
मगर खून अब भी निकल रहा है और दर्द भी बाकि है.

महफ़िल

महफ़िल में हमारी कोई तनहा नहीं रहता
हम और हमारी तन्हाई के आलावा,
कोई तीसरा नहीं रहता ..

बुलाते हैं हम बहुत लोगों को,
मगर यादों के सिवा किसी का साथ,
मयस्सर नहीं होता.

झरोखों से आती है रौशनी बहुत,
मगर महफ़िल को जो रौशन कर दे,
वो सितारा नहीं होता.