Thursday, April 15, 2010

महफ़िल

महफ़िल में हमारी कोई तनहा नहीं रहता
हम और हमारी तन्हाई के आलावा,
कोई तीसरा नहीं रहता ..

बुलाते हैं हम बहुत लोगों को,
मगर यादों के सिवा किसी का साथ,
मयस्सर नहीं होता.

झरोखों से आती है रौशनी बहुत,
मगर महफ़िल को जो रौशन कर दे,
वो सितारा नहीं होता.

6 comments:

  1. Yes jayda aachha hai ... like the last lines

    "झरोखों से आती है रौशनी बहुत,
    मगर महफ़िल को जो रौशन कर दे,
    वो सितारा नहीं होता."

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  2. Aama miya, shayari toh khoob likhte ho, par jara yeh batao, ye mayassar kya hota hain?

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  3. हमारे बाद महेफिल मैं अफसाने बयां होते है ! भरे हमें ढूंढे गी नजाने हम कहा होंगे !!!!

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  4. Kya baat hai bhai. Aap ke andar ke shayar aakhir jaag hi utha.
    Arafat

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